नन्ही सी जान है वो,
नन्हें से सपने है उसके,
पर उन्हें कोई पूरी होने नहीं देता,
वह दुर्गा वही काली,
दिन भले ही मजे में गुजरे,
मस्ती में हो जाती कितनी रात,
और हुए कितने सवेरे,
खुली हवा में लेते सांस,
क्यों डरती थी वो बाहर जानें में
क्यों डरती थी वो बाहर जाने में,
ऐसा क्यों लगता हैं,
उसे कुछ हो ना जाए बाहर आने में,
क्यों उसने जमाने को देखा नहीं,
सुनो लड़कियों! तुम पहाड़ सी डटे रहना
अपने खिलाफ होने वाले हर अन्याय को
मूक होकर मत सहना,
सुनो लड़कियों! याद रखना कि तुम हो बेहद मजबूत
उसको भी जीने का हक था।
जिसके आने से पहले ही कर दी विदाई।।
उसकी तो कोई गलती नहीं थी।
जो इस संसार को ही न देख पाई।।
मैंने खुद को इस नजर से देखा है
मैंने खुद को इस नजर से देखा है।
जिस नजर से दुनिया को मुझे अक्सर नजरअंदाज करते देखा है।।
मैं खुद की नजर से नजर मिला सकूं, बस इतना खुद को तराशा है।
मझधार में डूब ना जाए यह नजर, खुद से मंजिल तक पहुंचने का वादा है।।
चलो आज कुछ बैठकर बातें करें।
थोड़ा रो ले, थोड़ा हँस ले, मन बस हल्का करें।।
दोस्ती की कुछ हदें गढ़े।
चलो मिलकर हम लिखे पढ़े।।
वादियों को छूकर, हवाओं को महसूस करके।
मै चल रही हूँ, ज़िंदगी को साथ लेके।।
बढ रही हूँ अपनी मंजिल की ओर।
जहां एक एहसास खुद मुझे बुला रही है।।
सपना देखना होता है आसान।
तुम उसे पूरा करके दिखाओ।।
दौड़ना तो हर कोई चाहता है।
सबसे आगे बढ़ कर दिखाओ।।
मुझे रास्ते का पता न था।
मेरी माँ को मंजिल का पता न था।।
बहुत ख़ूबसूरत था जीवन का सफर।
जो आ गई मैं दुनिया में अगर।
ये कैसी अजीब दुनिया है।
कहीं झूठे लोग हैं तो कहीं सच्चे।।
कहीं अपने हैं तो कहीं पराए।
कोई मेहनती है तो कोई आलसी।।
जल है जीवन का आधार।
इसे न बनाओ व्यर्थ का आहार।।
जल के बिना असंभव जीवन।
इसको व्यर्थ न करो तो जीवन संभव।।
सपना एक मैंने भी देखा।
बनूंगी मैं एक पुलिस ऑफिसर।।
इस सपने को पूरा करने में।
लगाऊंगी मैं अपनी जी जान।।
काम करोगी ऐसा तुम, जग में नाम रोशन कर जाओगी।
किसी के सर का बोझ नहीं तुम, सबका बोझ उठाओगी।।
सागर की लहरों से लड़कर हर तूफान से टकराओगी।
ऊँची उड़ान लगाकर तुम, हवा में उड़ती जाओगी।।
एक बार फिर दिवाली आई और मैंने नई कुर्ती सिलाई।
ये दीवाली भी हर बार की तरह खूबसूरत थी, खुशियों से भरी थी।।
पर ना जाने क्यों इस दिवाली में, वो बात नही थी।
सोच रही थी क्या कमी रह गई, याद आया ये तो वो भीड़ ही नहीं थी।
छोटी सी परी होती है बेटियां।
मां बाप की जान होती हैं बेटियां।।
क्यों बोझ समझते हो बेटियों को?
एक बार जीवन देकर देखो बेटियों को।।
कुछ कर गुजरने की हसरत अब दिल में है।
बन्द पिंजरे से निकलने की हसरत अब दिल में है।।
खुल कर जी ले अपनी जिंदगी ऐ नारी।
जिंदा जज्बात हमारे भी तो दिल में है।।
उठा शस्त्र, उठा तू नारी है।
साक्षात देवी अवतारी है।।
कन्या रुप धर घरती पर।
आई भद्रकाली अवतारी है।।
नन्हीं सी जान थी वो भी।
प्यारी सी मुस्कान थी उसकी भी।
प्यारी प्यारी लगती थी वो भी।।
एक दिन चल पड़ी थी वो भी।
एक होती है नन्ही बच्ची।
जिसको कोख में ही मार दिया जाता है।।
क्यों मारा? मै यह बताऊगीं।
क्योंकि वो एक लड़की है।
लड़कियों के सपने परंपराओं ने तोड़े
हमारे भी है सपने, हम भी कुछ बने।
हम भी कुछ कर के दिखाएं।।
मगर लोगों के ताने, सुन-सुनकर सभी सपने तोड़े।
घुट घुट कर मरते रहे, पर मुंह न खोले।।
माँ कहती थी तू जान है मेरी।
प्यारी प्यारी मां है तू मेरी।।
मां एक भगवान है।
बच्चों के लिए मां उसकी जान है।।
पानी क्या है, क्या है उसकी जाति?
पूछ गगरी से शीतल जल कैसे कर पाती?
गगरी हूं, मिट्टी पानी से बन जाती।
कुंभकार का पसीना मेहनत रंग लाती।
अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी
अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी।
वह चार थे और बेचारी अकेली खड़ी थी।।
बेदर्द है जमाना सुना था उसने।
लग रहा था वह बेदर्दी देखने वाली थी।।
चाह नहीं है अब मुझको, कहलाऊँ मैं सीता जैसी।
अब तो बस उड़ना चाहती हूं, बिल्कुल कल्पना जैसी।।
फिर क्यों बनूं मैं द्रौपदी जैसी।
कहां बचा है कोई अब कृष्ण जैसा।।
आओ मिलकर एक कदम उठाएं,
स्वच्छता पर एक ध्यान लगाएं।
सुनो, जागो और स्वच्छता को मिशन बनाओ,
साफ-सफाई का रखोगे ध्यान तब बनेगा भारत महान।।
क्यों घुट-घुट जाती हूं,
बंद कमरे में रहती हूं ।।
दर्द पीड़ा मैं सहती हूं,
फिर भी कुछ नहीं कहती हूं।।
औरत है, कोई सामान नहीं।
अकेली है, मगर कमजोर नहीं।।
औरत है, कोई सामान नहीं।
सिर्फ जिस्म नहीं, जान भी होती है।
नारी बिना संसार अधूरा है।
खुशबू बिना जैसे फूल अधूरा है।।
जैसे संसार बिना इंसान अधूरा है।
धरती बिना अंबर अधूरा है।।
किताबों की अनूठी दुनिया है महान।
स्वच्छ, सफलता और शिखर का इसमें ज्ञान।।
मुश्किल है थोड़ा इसको पढ़ना।
लेकिन यह है शिक्षा का भण्डार।।
क्यों समझा है नारी को अभिशाप।
मत करो उसपर अत्याचार।।
जो करनी हो समाज की रक्षा।
तो करो पहले नारी की सुरक्षा।।
उसकी एक मुस्कान हर गम को भुला देती है।
इसका एक स्पर्श ममता भी कहलाती है।।
वह जन्म देती है, सारी दुनिया को।
दुर्गा भी वही, काली भी कहलाती है।।
वक्त ये भी बदल जाएगा जनाब,
वक्त वो भी बदल गया था, वक्त ये भी बदल जाएगा ।
क्या हुआ जो आज टूटा है, कल फिर मुस्कुराएगा ।।
सब कुछ बदल जाता है आने वाले वक्त के साथ
कुछ सपने टूट जाते हैं, तो कुछ सपने रंग लाते हैं।
वक्त यह भी बदल जाएगा जनाब….।।
गर्भ में भी मुझ पर लटक रही थी एक तलवार
गर्भ में भी मुझ पर लटक रही, थी एक तलवार।।
जन्म लिया धरती पर फिर भी, थी मैं हमेशा लाचार।।
मेरे आने की खबर सुनकर, बहुत दुखी था मेरा परिवार।।
मां पर उठ रहे थे कई सवाल, घर में हो गया था एक बवाल।।
बचपन जाने कहां खो गई, नहीं मिला कभी परिवार का प्यार।।
बरस रही थी मेरी आंखें, होता देख ये अत्याचार।।
घूंघट प्रथा के पर्दो में।
लिपटी है सभी औरतें।।
घूंघट न उठा पाती।
समाज के डर से।।
सुंदर दृश्य न देख पाती।
घूंघट के अंधकार से।।
फिर भी गांव में खुशियां होती हैं
ग्रामीण जीवन में समस्याएं होती हैं।
फिर भी जीवन में खुशियां होती हैं।।
न शोर शराबा होता है।
न मिलावटी जीवन है।
गम में भी खुशियां बेशुमार होती हैं।।
सबका होता है एक सपना, जो होता है उसका अपना,
सपना तो एक मेरा भी है, पूरा करना जो मुझे यही है,
कलम पकड़ी थी मैंने हाथों में, वह करके कुछ ज़ज्बातों में, उस कलम को ही अपना सपना बना लिया, उसी में अपना जीवन छुपा लिया।।
कहना था कुछ, पर कहती किससे, इसलिए मैनें दोस्ती कर ली इससे,
इससे अच्छा दोस्त मुझे मिलता कहा, और कौन है किसका यहां।।
अपने मन की सब लिख दी, इसी से बजाय कहने के यहाँ, और किसी से लिखते लिखते मुझे याद आया, जो रुक कर पाया, जो कविता रुप पाया।।
यह तो है प्रकृति की देन।
मत समझो इसे लज्जा की देन।।
इन दिनों सब पीड़ा वह सह लेती।
फिर भी चेहरे पर उसके एक मुस्कान सी रहती है।।
छुप छुप कर उसे रहना पड़ता है।
इन दिनों उसे क्या क्या नही उसे सहना पड़ता है ।।
महावारी हो तो मंदिर मस्जिद मत जाना ।
घर से बाहर ही मत आना।।
घुटनों से रेंगते-रेंगते
कब पैरों पर खड़ी हुई
तेरी ममता की छांव में
जाने मैं कब बड़ी हो गई
काला टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है
मैं ही मैं हूं हर जगह
प्यार ये तेरा कैसा है
सही करो फिर भी दुनिया क्यों देती है मुझको ये इल्जाम
नजरिया गलत तो दुनिया का है, मैं क्यों छोड़ दूं अपना काम।।
अफवाहे-ताने सुनते हुए भी, मै नहीं रुकी चलते चलते,
अफवाहों से जन्मी ये आग भी, अब थक गई जलते-जलते।।
बाधा डालना दुनिया का काम, मै करुंगी वही जो मन चाहे, दुनिया वालों ये मेरी किसमत ले जाएगी वही जहां है।।